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ब्राह्मण, बकरा और तीन ठग : पंचतंत्र की कहानी
वर्तमान में भी उतनी ग्राह्य और भाव बोधक है जितनी इनके लिखते समय में थी ।
साहित्यिक रूप है। इस कहानी को हमने कभी दादी-नानी के मुख से लोक कथा के रूप में
हैं जिन्होंने मानव के मानसिक अन्तर्द्वन्द्वों और गूढ़ रहस्यों को परखने का यत्न
यह आधुनिकता मात्र नगरों और कस्बों तक ही सीमित नहीं है अपितु इस धीरे-धीरे
प्रभावित होती रही। इसकी इसी विकास यात्रा पर हम इस इकाई में गहनता से विचार
रज्जब क़साई अपना रोज़गार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रक़म। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफ़ी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुरा-नामक गाँव में ठहर जाने का निश्चय किया। उसकी पत्नी वृंदावनलाल वर्मा
ने इसके अतिरिक्त सुखमय जीवन और बुद्ध का कांटा दो कहानियाँ और लिखी ।
(एक) जब तक गाड़ी नहीं चली थी, बलराज जैसे नशे में था। यह शोर-गुल से भरी दुनिया उसे एक निरर्थक तमाशे के समान जान पड़ती थी। प्रकृति उस दिन उग्र रूप धारण किए हुए थी। लाहौर का स्टेशन। रात के साढ़े नौ बजे। कराची एक्सप्रेस जिस प्लेटफ़ार्म पर खड़ी थी, वहाँ चन्द्रगुप्त विद्यालंकार
के चितेरे के रूप में जिन अन्य कहानीकारों ने हिन्दी कहानी संसार में प्रवेश किया
इस युग के अन्य कहानिकारों की कहानियों में कम मिलती हैं। इनकी प्रसिद्ध कहानियों
प्रसार द्विवेदी का विचार है कि- "यह मुस्लिम (फारसी) प्रभाव की अन्तिम कहानी
लड़ती भेंड़े और सियार : पंचतंत्र की कहानी
सुना तो कभी पण्डित जी के मुख से धार्मिक कथा के रूप में, ये सभी राजा रानी